Pen of Tabish

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अपने ही घर मे माँ किराए-दार बन गई

रिश्तों में कुछ ऐसी तकरार बन गई 
आँगन के बीच ही इक दीवार बन गई

भाई का हक़ है मारा एक भाई ने ही आज
रिश्तों की अहमियत तार-तार बन गई

कुछ दिन तुम्हारे घर, कुछ दिन हमारे घर 
अपने ही घर मे माँ किराए-दार बन गई

करते रहे उम्मीदें बेटे से सारी उम्र
बेटा निकम्मा बेटी होनहार बन गई

बचपन संभाला गोद में तुमको जवानी दी 
आया बुढापा तो माँ आज खार बन गई

औलाद ने माँ का हक़ कुछ यूँ अदा किया
आँसू के घूट पी के लाचार बन गई

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10 Comments

Aliya khan

26-Aug-2021 05:05 AM

Shi kaha

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Pen of Tabish

26-Aug-2021 02:39 PM

Bahut shukriya aaliya jee

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Seema Priyadarshini sahay

23-Aug-2021 11:37 AM

बहुत खूबसूरत रचना।बस तकरार की जगह टकरार हो गया है उसे सुधार लें।🙏🙏

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Pen of Tabish

23-Aug-2021 04:56 PM

सीमा जी आपका बहुत शुक्रिया सही कर लिया है मैंने तकरार को

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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI

23-Aug-2021 04:29 AM

आंगन के बीच ही इक दीवार बन गई।।।।।कर लीजिए sir तब बहर में आ जाएगी🙏🙏🙏🙏

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Pen of Tabish

23-Aug-2021 04:55 PM

जी बेहद शुक्रिया मैं बस सीख रहा हूँ लिखना उम्मीद करता हूँ आप सभी से बहुत कुछ आगे सीखने को मिलेगा

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